दादी- पोता एकांकी (स्वैच्छिक) प्रतियोगिता हेतु 06-Mar-2024
दादी और पोता (एकांकी)
(दादी और पोता एक दूसरे की जान हैं दादी थोड़ा ऊॕंँचा सुनती हैं और पोते को दादी को चिढ़ाने में मज़ा आता है। बात करने की कलाकारी उसमें कूट-कूट कर भरी है)
दादी- घर में चारों तरफ़ देखते हुए पप्पू !पप्पू !कहाॅं हो तुम, कहाॅं हो बेटा? पोता- घर के अंदर प्रवेश करते हुए क्या दादी कहाॅं हो, कहाॅं हो लगा रखी हैं, यही तो हूॅं। दादी- हाय !हाय! क्या ज़माना आ गया है। कल का छोकरा कैसे दो टूक बोल रहा है? पोता- तो क्या करूॅं आप ही तो बिना देखे शोर मचाए जा रही हैं। और यह दो टूक क्या होता है? बोली कोई चीज़ है क्या जिसे दो टुकड़े करके बोल रहा हॕँ। दादी- तो क्या करूॅं जी चुराकर कहीं कोने में घुसकर बैठे रहोगे। आवाज़ देने पर बोलोगे नहीं ,और बोलोगे तो आग ही उगलोगे। पोता- ओहो! हमारी दादी तो बात- बात में कहानी भी कह लेती हैं। दादी- हॅंसकर ,माथा ठोकते हुए, कहानी नहीं मेरे लाल , मुहावरा। पोता- जब आग खाया ही नहीं तो उगलूंगा कैसे? दादी- माथा पीटते हुए अरे बेटा! बिना सोचे- समझे बोल जाते हो? आग उगलने का मतलब भी समझे? पोता- समझना क्या है आग खाया ही नहीं तो उगलूॅंगा क्या! दादी- आग उगलने का मतलब टेढ़ा बोलना है । पोता- भला बोली को कैसे टेढ़ा करते हैं? दादी-यह जो टका सा जवाब दे रहे हो न इसे ही आग उगलना कहते हैं। पोता- (अपने आप से अब जो भला चाहता हूॅं तो चुप ही हो जाऊॕँ) और शांत हो जाता है। दादी- अब मुॅंह में ताला पड़ गया। पोता- कहाॅं मुॅंह में ताला लगा है? दादी- ताला लगने का मतलब यह नहीं कि मुॅंह में ताला लटक जाए। पोता- फिर? -दादी- मुॅंह में ताला लगने का मतलब ज़रूरत पर भी न बोलना, बिल्कुल शांत हो जाना । पर तुम तो कुछ समझोगे नहीं और घर सर पर उठा लोगे। पोता- वाह जी वाह ! आप कभी बात का टुकड़ा कर देने को,कभी बात को टेढ़ा करने को तो कभी मुॅंह में ताला लगाने को कहती हैं, पता नहीं कैसे यह सब संभव है? दादी-(सर पीटते हुए) अरे बेटा! पोता-( तुनकते हुए) अरे बेटा! क्या कह रही हैं ?पता नहीं क्या-क्या करने कह रही है मुझे! कुछ समझ भी नहीं आ रहा है । दादी- बेटा ये सब मुहावरे हैं। पोता- बात- बात में मुहावरे कहाॅं से और क्यों आ जाते हैं ? मुहावरे छोड़िए चलिए कोई कहानी सुनाइए। दादी- बेटा हम बड़े किसी बात में गंभीरता लाने के लिए उसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आदतन बात-बात में मुहावरों का प्रयोग कर लेते हैं।ठीक है कहानी सुना रही हूॅं लेकिन कहीं कुछ समझ में नहीं आए तो आॕंँखें मत दिखाना। पोता- मैं बिल्कुल चुप रहूॅंगा। दादी- यह हुई ना अच्छे बच्चों वाली बात (दादी खूंखार कुत्ता और बच्चे की कहानी सुनाती हैं, जिसमें खूंखार कुत्ता बच्चे पर झपटता है ,लेकिन बच्चा प्यार से उसे पुचकारने लगता है जिससे कुत्ता जाकर उसे प्यार से चाटने लगता है।) इस प्रकार प्यार की भाषा से जानवर भी पिघल जाता है। और बच्चे का को कोई नुकसान नहीं पहुॅंचाता है। पोता- वाह! दादी क्या बात कहीं! (दादी से दुलराते हुए)अरे दादी! मैं आपसे कुछ गुस्से में थोड़ी बोलता हूॅं। दादी- अरे बेटा तो मैं तुमसे नाराज़ थोड़े ही हूॅं। वह तो मैं ऐसे ही मज़ाक में बोली थी। पोता- (दादी की नाराज़गी दूर करने के लिए) फिर क्यों आप बात- बात में आग बबूला हो जाती हैं। दादी- वाह बेटा !एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी पोता-ठीक है दादी मैं तो चला घोड़े बेचकर सोने। दादी- अच्छा बेटा! तो तू भी बात-बात में मुहावरों का प्रयोग करना सीख ही गया। पोता- दादी के साथ रहकर पोता न सीखे !यह भला कैसे संभव है? अच्छा दादी अब मैं चला सोने। (और इस तरह दादी और पोते की मुहावरों भरी बात पोते की नींद से समाप्त होती है) साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
13-Mar-2024 11:06 PM
👌👌
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Varsha_Upadhyay
08-Mar-2024 09:48 AM
Nice
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Mohammed urooj khan
07-Mar-2024 02:45 PM
👌🏾👌🏾
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